धौलपुर में मुगलकालीन विरासत को संभालने की कवायद शुरू

धौलपुर में शुरू हुई मुगलकालीन विरासत को संवारने की कवायद
अब 7.70 करोड़ से होगा पुनरूद्वार एवं विकास कार्य,ऐतिहासिक शेरगढ दुर्ग
के भी दिन फिरेंगे
-प्रदीप कुमार वर्मा
धौलपुर। चंबल के बीहड तथा दस्युओं की करतूतों के लिए कुख्यात धौलपुर में
अब प्राचीन विरासत को सहेजने और संवारने की कवायद शुरू हो गई है। शासन और
सरकार की इस कवायद में मुगलकालीन विरासत तालब-ए-शाही के पुनरुद्वार का
कार्य होगा। इसके साथ ही ऐतिहासिक शेरगड किले के भी दिन अब फिरेंगे।
पर्यटन विभाग ने धौलपुर जिले के प्राचीन स्थलों के विकास की कार्य योजना
तैयार की है। इस कार्ययोजना के अमलीजामा पहनने के बाद में धौलपुर जिला
सूबे के पर्यटन मानचित्र पर अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज करा सकेगा।
                धौलपुर जिले के बाडी उपखंड क्षेत्र में स्थित तालाब-ए-शाही के गौरवशाली
अतीत पर गौर करें,तो पता चलता है कि मुगल सम्राट जहांगीर के जमाने में
निर्मित तालाब-ए-शाही मुगल राजपरिवार के लिए एक भव्य विश्राम तथा आखेट
स्थल था। बाद में धौलपुर रियासत के जाट शासक महाराज उदयभान सिंह ने
तालाब-ए-शाही को नई साजसज्जा और संरक्षण प्रदान किया। प्राकृतिक रुप से
समृद्व तालाब-ए-शाही एक बांध के रूप में भी जल भंडार का प्राकृतिक स्रोत
है। सर्दियों में तालाब-ए-शाही बांध पर कई देशी विदेशी पक्षियों का
प्रवास भी रहता है।
                पर्यटन विभाग की कार्ययोजना में तालाब-ए-शाही के सौन्दर्यीकरण के लिए 7
करोड़ 70 लाख रूपये की परमानेंट टेक्लीकली एडवाईजरी कमेटी की मीटिंग में
कार्य कराए जाने के संबंध में सहमति बन गई है। सौन्दर्यीकरण के तहत
तालाब-ए- शाही की छतरी,शौचालय, फर्श, प्रवेश द्वार, डाक बंगला एवं भवन का
जीर्णोद्धार एवं चित्रमाला के कार्य कराए जाएंगे। इसके अलावा
तालाब-ए-शाही को रोशन करने के लिए सोलर लाईट लगाने का भी होगा। इससे बाडी
के तालाब-ए-शाही क्षेत्र में देशी विदेशी पर्यटकों की आमद बढेगी।
पर्यटकों की मौजूदगी से तालाब-ए-शाही से लगे गांवों के लोगों को रोजगार
मिल सकेगा।
                पर्यटन विभाग की ओर से प्राचीन शेरगढ़ किले के संरक्षण के लिए प्रस्ताव
भेजने पर भी सहमति बनीं हैं। आगरा-मुबंई नेशनल हाईवे पर चंबल नदी के बीहड
क्षेत्र में स्थित ऐतिहासिक शेरगढ किला यादव वंशी शासक तिमन पाल के पुत्र
धरमपाल ने ग्यारहवीं शताब्दी में बनवाया था। मुगल शासक बाबर के जीवन पर
आधारित कृति बाबरनामा में इसे धौलपुर दुर्ग कहा गया है। लेकिन शेरशाह
सूरी द्वारा जीर्णाेद्वारा कराए जाने के कारण इसका नाम शेरगढ किला पडा।
पर्यटन विभाग की इस कवायद के कारण वर्तमान में पुरातत्व विभाग द्वारा
राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित शेरगढ किले के भी दिन फिरने की
उम्मीद बंध रही है।