धौलपुर में आलू और गेहूं की जैविक खेती का हुआ आगाज

धौलपुर में गेंहू एवं आलू की जैविक कृषि के 375 मॉडल किए जाएंगे तैयार
एक करोड़ 59 लाख 60 हजार रूपए होंगे खर्च
-प्रदीप कुमार वर्मा
धौलपुर। देश के आशान्वित जिलों में आधारभूत सुविधाओं के विकास के लिए की
जा रही पहल का अब प्रभावी असर देखने को मिल रहा है। पूर्वी राजस्थान के
डांग इलाके के बाहुल्य वाले धौलपुर जिले में उच्च गुणवत्ता के खाद्यान्न
पैदा करने के आशय से गेहूं व आलू की जैविक कृषि के 375 मॉडल तैयार किए
जाएंगे। इसके लिए नीति आयोग से आकांक्षी जिले के विकास के लिए प्राप्त
पुरस्कार राशि में से कृषि विभाग के लिए एक करोड़ 59 लाख 60 हजार रूपए की
राशि का प्रावधान किया गया है। जैविक कृषि के इन मॉडल को तैयार करने के
लिये किसानों को जैविक कृषि उत्पादन के क्षेत्र में प्रशिक्षण से लेकर
जैविक आदान सहायता दी जाएगी। जैविक कृषि का यह इकोनोमिक मॉडल जिले की
अर्थव्यवस्था के लिए एक सार्थक कदम होगा।
                इस कवायद के बारे में जिला कलक्टर राकेश कुमार जायसवाल ने बताया कि आलू
की फसल हाई वैल्यू क्रॉप्स में आती है। उर्वरकों एवं कीटनाश्कों के
अत्यधिक उपयोग के कारण ना सिर्फ पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है
बल्कि जिले के छोटे किसानों के पास कम जोत में अत्यधिक लागत रहती है। अत:
आलू की जैविक खेती की मदद से किसान कम लागत में अपना उत्पादन बढ़ा सकते
हैं। जिससे छोटे किसानों को भी अच्छा मुनाफा हो पाएगा। जैविक उत्पादन
कार्यक्रम हेतु कृषि विभाग के लिए एक करोड़ 59 लाख 60 हजार रूपए की राशि
का प्रावधान किया गया है। जिले में गेहूं के कुल 250 एकड़ एवं आलू के 125
एकड़ क्षेत्रफल में जैविक उत्पादन के मॉडल तैयार कराते हुए जैविक उत्पादन
कार्यक्रम को जिले में बढ़ाने की पहल की शुरूआत कर दी गई है।
                कृषि विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक जिले में इस वर्ष 9 हजार 802
हेक्टेयर में आलू की फसल की बुवाई की गई है। आलू की जैविक खेती से फसल की
पैदावार में करीब 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है। साथ ही जैविक विधि से
खेती करने के उपरांत फसल से जो उत्पादन मिलेगा उसका बाजार में विक्रय
मूल्य करीब 50 प्रतिशत अधिक मिलता है। इस प्रकार किसान का उत्पादन भी
बढ़ेगा एवं उत्पाद का बाजार में मूल्य भी अधिक मिलेगा। अत: ऐसा माना जा
रहा है कि जैविक विधि से आलू की खेती करने से किसान को लाभांश में वृद्धि
होगी। वर्तमान में बाजार में जैविक उत्पादों की भारी मात्रा में मांग है
और यदि किसान जैविक प्रमाणीकरण के साथ अपनी फसल पैदा करते हैं, तो बाजार
में जैविक उत्पादों का अधिक मूल्य मिलेगा है। जिससे किसानों की आय में
वृद्धि होने के साथ-साथ जमीन की उर्वरा शक्ति में भी बढ़ोतरी होगी।
                बताते चलें कि जैविक खेती, देशी खेती का आधुनिक तरीका है, जिसमें
प्रकृति एवं पर्यावरण को संतुलित रखते हुए खेती की जाती है। इसमें
रसायनिक खाद कीटनाश्कों का उपयोग नहीं कर खेत में गोबर की खाद, कम्पोस्ट,
जीवाणु खाद, फसल चक्र और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे रॉक फास्फेट,
जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। फसल को प्रकृति में
उपलब्ध कीटों, जीवाणुओं और जैविक कीटनाशकों द्वारा हानिकारक कीटों तथा
बीमारियों से बचाया जाता है। यही नहीं,जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ
क्षमता तथा सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है। आधुनिक समय में निरन्तर
बढ़ती हुई जनसंख्या, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि की उर्वरा शक्ति का संरक्षण
एवं मानव स्वास्थय के लिये जैविक खेती की राह अत्यन्त लाभदायक है तथा अब
धौलपुर में भी इसकी शुरूआत हो रही है।